धर्मशाला में पांचवे टेस्टे के तीसरे ही दिन भारत ने इंग्लैंड को एक पारी और ६४ रनों से हराकर टेस्ट श्रंखला 4 - 1 से जीतकर नया इतिहास रच दिया. टेस्ट क्रिकेट के लगभग 150 वर्षों के इतिहास में में ये मात्र चौथा मौका था जब किसी श्रंखला में पहला टेस्ट हारने के बाद किसी टीम ने लगातार चार टेस्ट मैच जीते हैं.
विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में और विश्व टी 20 कप के फाइनल में हार से भारतीय क्रिकेट प्रेमियों में व्याप्त निराशा अब बहुत हद तक दूर हो गई है.
हाल के वर्षों में इंग्लैंड ने बेजबौल तकनीक का इस्तेमाल किया था जिसमे टीम के रन बनाने की गति तेज होती है. पहले टेस्ट में कुछ हद तक इंग्लैंड की टीम सफल रही लेकिन बाद के मैचों में यह तकनीक बुरी तरह फ्लॉप साबित हुई और भारतीय स्पिनर्स के आगे उनकी कुछ नहीं चली.
हालाँकि घरेलु मैदान पर भारत का रिकॉर्ड बहुत अच्छा रहा है और किसी भी मेहमान टीम के लिए भारत को हराना मुश्किल होता है लेकिन इस तरह से एकतरफा जीत का अनुमान किसी को भी नहीं था .
उम्मीद के अनुसार विकेट स्पिनर्स के अनुकूल रहे और दोनों टीमों के स्पिनर्स ने इनका भरपूर फ़ायदा उठाया . भारत और इंग्लैंड के सोइनरों ने पांच मैचों की इस श्रंखला में कुल 129 विकेट लेकर 100 वर्षों पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया. इससे पहले वर्ष 1924 - 1925 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में खेले गए टेस्ट सीरीज में स्पिनर्स ने कुल 128 विकेट लेने का रिकॉर्ड बनाया था. इस टेस्ट सीरीज में भारत की और से सर्वाधिक विकेट रामचंद्र आश्विन ने लिया उन्होंने कुल 26 विकेट चटकाए जबकि इंग्लैंड के टॉम हार्टली ने 22 विकेट लिए. धर्मशाला टेस्ट आश्विन का 100वां टेस्ट था और इसमें भी कुल 9 विकेट लेकर आश्विन ने अपनी छाप छोड़ी .
इनमे सबसे अधिक प्रभावित किया ध्रुव जुरैल ने. राजकोट और रांची टेस्ट में जुरैल ने भारत को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बहुतों को इनमे धोनी की छाप भी दिखाई दे रही है. रांची टेस्ट के चौथे दिन भारत 192 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए एक समय एक विकेट के नुक़सान पर 99 रन बना चुका था.जीत सहज दिख रही थी, लेकिन अचानक से 21 रनों के भीतर चार खिलाड़ी आउट हो गए. दबाव पूरी तरह से टीम इंडिया पर आ गया.इन हालात में शुभमन गिल को दूसरे छोर पर शिकन तक नहीं आई. वह इसलिए क्योंकि उन्हें पता था कि साथ देने के लिए जुरेल है.जुरेल ने फिर से नाबाद 39 रनों की पारी खेली. इसके चलते उन्हें प्लेयर ऑफ़ द मैच का पुरस्कार भी मिला.
राजकोट में भी पहली पारी में जब जुरेल बल्लेबाज़ी के लिए आए थे तो 155 रन पर ही टीम इंडिया के 5 विकेट गिर चुके थे. जल्द ही ये स्कोर 7 विकेट के नुकसान 177 रन में बदल गया.इन अति दबाव वाले हालात में भी जुरेल ने मैच के तीसरे दिन लंच तक आक्रामकता और सूझबूझ के बीच तालमेल दिखाते हुए 90 रन की पारी खेलकर भारत के लिए जीत का राष्ट प्रशस्त किया.
दुसरे खिलाड़ी जिसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वे हैं सरफ़राज़ . सरफ़राज़ के बारे में अक्सर ये शिकायत रहती है कि उन्हें मौका नहीं दिया जा रहा है और जब उन्हें मौका मिला तो अपने चयन को सरफ़राज़ ने सही साबित किया. छठे नंबर पर कई पारियों में सरफ़राज़ ने ठोस और जरुरत के अनुसार तेज़ बल्लेबाजी भी की.
रांची में जब जसप्रीत बुमरा उपलब्ध नहीं थे तो सिराज के साथ तेज़ गेंदबाजी के लिए आकाशदीप को चुना गया और अपने पहले ही टेस्ट मैच में आकाशदीप ने सटीक गेंदबाजी कर 3 विकेट चटकाए.
अंतिम टेस्ट में देवदत्त पद्दिकल को आजमाया गया और अर्ध शतक बनाकर उन्होंने भी अपनी उपयोगिता साबित की. इससे ये साबित होता है की भारत बेंच स्ट्रेंथ काफी मज़बूत है . विरत कोहली पूरी सेइरिएस में नहीं खेले. रविन्द्र जडेजा भी दो मैचों में उपलब्ध नहीं थे. रिषभ पन्त और शमी जैसे स्थापित खिलाडी भी खेलने की स्थिति में नहीं थे .
ये भविष्य के लिए बहुत ही शुभ संकेत है.
अब आइये बात करते हैं श्रंखला के भारतीय हीरो खिलाडियों की. सबसे पहले यशस्वी जैसवाल. इस सीरीज में बैजबॉल का तोड़ 'जायसवाल का जैसबॉल' बना. यशस्वी ने पूरी सीरीज में अटैकिंग अंदाज में बल्लेबाजी की. यशस्वी ने इस सीरीज में कुल 9 पारियों में सर्वाधिक 712 रन बनाए, जिसमें दो दोहरे शतक और तीन अर्धशतक शामिल रहे. इस दौरान यशस्वी का स्ट्राइक रेट 79.91 और औसत 89.00 रहा. यशस्वी ने 68 चौके और 26 छक्के लगाए. 22 साल के यशस्वी ने विशाखापत्तनम टेस्ट मैच में 209 रनों की पारी खेली थी. फिर राजकोट टेस्ट में भी इस युवा खिलाड़ी ने भारत की दूसरी पारी में 214 रन बना डाले. फिर रांची और धर्मशाला टेस्ट मैच में भी यशस्वी का प्रदर्शन शानदार रहा. यशस्वी इस शानदार प्रदर्शन के चलते 'प्लेयर ऑफ द सीरीज' चुने गए.
दुसरे हीरो रहे रामचंद्र आश्विन. अनुभवी ऑफ-स्पिनर रविचंद्रन अश्विन ने धर्मशाला में अपने टेस्ट करियर का 100वां मैच खेला. अश्विन इस सीरीज जीत के हीरोज में से एक रहे. अश्विन ने कुल 10 पारियों में 24.80 की औसत से सबसे ज्यादा 26 विकेट चटकाए. इस दौरान अश्विन ने दो बार पारी में पांच विकेट लिए.
कप्तान रोहित शर्मा की जीतनी भी तारीफ़ की जाये कम होगी. रोहित की कप्तानी में अलग तरह की परिपक्वता और अताम्विश्वास देखने को मिलता है. किस गेंदबाज को कब गेंद देनी है, रोहित का फिअसला हमेशा सटीक बैठा. रोहित ने कप्तानी के साथ-साथ बल्ले से भी कमाल का खेल दिखाया. रोहित ने इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में 44.44 की औसत से 400 रन बनाए. इस दौरान उनके बल्ले से दो शतक और एक अर्धशतक निकला. राजकोट टेस्ट में भारत पहले ही घंटे में तीन विकेट खोकर मुश्किलों में था, लेकिन रोहित ने शतकीय पारी खेलकर टीम को संकट से उबारा.
टेस्ट श्रंखला जितने में कुलदीप यादव ने अहम् भूमिका निभाई.कुलदीप यादव मूलत: गेंदबाज हैं, लेकिन उन्होंने इस सीरीज में गेंद के साथ-साथ बल्ले से भी दमदार प्रदर्शन किया. कुलदीप ने 8 पारियों में 20.15 की औसत से 19 विकेट चटकाए. बल्लेबाजी की बात करें तो कुलदीप ने इस सीरीज में छह पारियों को मिलाकर कुल 362 गेंदें खेलकर 97 रन बनाए. कुलदीप को हैदराबाद टेस्ट मैच में खेलने का मौका नहीं मिला लेकिन उसके बाद हर मैच में कुलदीप ने बेहतर से बेहतर प्रदर्शन किया.
टीम इंडिया की सीरीज जीत में बाएं हाथ के ऑलराउंडर रवींद्र जडेजा की भी अहम भूमिका रही. जडेजा ने गेंद के साथ-साथ बल्ले से शानदार प्रदर्शन किया. जडेजा ने ..छह पारियों में 38.66 के एवरेज से 232 रन बनाए, जिसमें एक शतक और एक अर्धशतक शामिल रहा. गेंदबाजी की बात करें तो जडेजा ने छह पारियों में 25.05 के औसत से १९ विकेट भी चटकाए. आज के दिन में जडेजा एक आल राऊंदर के रूप में अपना अहम् स्थान भारतीय टीम में बना चुके हैं.
इसके अलावा श्भामन गिल ने भी बहुत ही सार्थक योगदान दिया.
कुल मिलकर ये कहा जा सकता है कि विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल और विश्व एकदिवसीय कप फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के हाथों जो हार मिली थी , बहुत हद तक इस जीत ने हार के ग़म को भुला दिया है. जिस तरह से नए खिलाडियों ने शानदार प्रदर्शन किया है, इससे उम्मीद बनती है की टी 20 विश्व कप में जीत के सूखे को रोहित के सेना समाप्त कर सकती है.