Monday, July 19, 2010

Ek Haadsa

सासाराम जाने के क्रम में दिनांक १२ जुलाई की घटना को भुलाना लगभग असंभव है. जिस टाटा सुमो से मै जा रहा था , पिरो से पहले उसने एक अधेड़ महिला को बीच सड़क पर धक्का मारा , बदकिस्मती से उस महिला की तत्काल उसी क्षण वँही पर मौत हो गई. अपने सामने वीभत्स मौत का नज़ारा मैंने पहली बार देखा . प्राण मुंह को आ गए. ऐसा लगा मानो सारी दुनिया यंही खत्म हो जाएगी . ड्राईवर ने जैसे तैसे गाडी को नियंत्रित किया. हम सभी यात्री चिल्लाए - भागो, भागो , और ड्राईवर गाडी लेकर भाग निकला. पीछे से लोगों का शोर सुने दिया. उस वक़्त हमें अपनी और ड्राईवर की सुरक्षा की चिंता थी. लेकिन मौत से ठीक पहले महिला के चेहरे की भाव भंगिमा , मन से निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी.

The kind of emotions displayed on her face- the surprise, the fear, her desperate attemt to escape and finally her helplessness in front of a speeding vehicle, all made me really very sad. Not only sad but also I felt guilty of not doing anything to save her. Should I have forced driver to stop after the accident? But this might have led to lynching of driver by irate mob. I cursed my fate .

मै उस दिन न ठीक से खा सका और न ही रात में ठीक से सो सका. महिला का चेहरा हमेशा मेरे जेहन में कई दिनों तक घूमता रहा. हो सकता हो की उस महिला के बच्चे उसकी प्रतीक्षा कर रहे हो. एक माँ के बिना उनके जीवन की क्या दशा हो सकती है. वो किसी की पत्नी होगी, किसी की बेटी होगी, किसी की बहन होगी, यह भी हो सकता है की किसी के पालने पोषने की पूरी जिम्मेवारी उसी के कंधे पर हो. निश्चित तौर पर एक व्यक्ति के चले जाने के बाद पूरा परिवार विखर सकता है.

Why sometime fate or bhagya becomes so bad for some people? Why without our own fault , really bad things happen to us? What is life? Why we take so much pain to shape up it when we know that it can any day without warning, without notice ? Why we plan so much for future?

इस दुर्घटना के ठीक एक दिन बाद मै बीमार पड़ा. कहीं ऐसा तो नहीं की मृत महिला की आत्मा ने मुझे और अन्य यात्रियों को श्राप दिया हो ?उस दुर्घटना में मेरा कोई role नहीं था पर guilty feeling तो हो ही जाती है...................

No comments:

Post a Comment